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Tuesday, September 6, 2022

कहानी- दस्तक


सुमिता ने विदेश जाने की अपनी तैयारी पूरी कर ली। दो घण्टे बाद उसकी फ्लाइट है। राहुल ने एक बार फिर रिक्वेस्ट किया "मुझे इस हाल में छोड़कर मत जाना प्लीज। तुम्हारी ज़रूरत है।"

-"क्यों ? मेरी क्या ज़रूरत ? किस चीज की कमी है ? रुपये पैसे की दिक्कत हो तो डैडी से माँग लेना।"

काल बेल बजी। विमला ने फाटक खोला। सुमिता के पिता अजयबाबु भीतर आये। उन्होंने पूछा - "जमाई बेटा कैसी तबियत है ? कुछ बेहतर महसूस कर रहे हो ?" सुमिता बौखला उठी-"कैसा है क्या ? ठीक है। अभी तो फोन किया था आपने। खामखाह काम-काज छोड़कर चले आते हैं।"
-"खामख्वाह ? क्या बकवास करती है? मैं तो सोच रहा हूँ काम-काज का जिम्मा सेक्रेटरी को देकर यहीं आकर रहूँ।"
-"हूँ! आप क्या तान्त्रिक हैं कि झाड़-फूँक से ठीक हो जाएगा ? जब प्लास्टर खुलेगा तो ठीक हो जाएगा। फ़ालतू टेंशन पालते हैं। "
पिता अपनी बेटी को अवाक् होकर देखते रहें। ज्यों ही उनकी निगाहें सामान पर पड़ी उन्होंने पूछा- "यह क्या ? कहाँ की तैयारी है ?"
- "टोकियो जा रही हूँ, मिस जापान कम्पीटिशन में हाँग काँग भी जाना है।”
-“दया नहीं आती तुमको ? राहुल के पूरे शरीर में बैंडेज बँधा हुआ है, वह मौत से लड़ रहा है और तुम सैर-सपाटा करने चली ? अभी तो दो साल पहले तुमने 'अराउण्ड 'द वर्ल्ड' प्रोग्राम बनाकर दो दर्जन देशों का भ्रमण किया था "

बिना उत्तर दिये सुमिता टॉयलेट में चली गयी। अजय बाबू बुदबुदाते रहे-"बड़ी अजीब-सी लड़की है। लाड़-प्यार से बिगड़ गयी है। बारह साल की थी तभी माँ चल बसी थी। मेरी माँ ने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया। सुमिता को मैं डाँटता वह मुझ पर पिल पड़ती। क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आता।"  

राहुल चुप था। असहाय, लाचार। वाकई सुमिता की दुनिया निराली है। उद्योगपति पिता की सम्पत्ति का गुमान तो है ही अपनी खूबसूरती पर इतना नाज़ है कि आई० ए० एस० पति को दो कौड़ी का समझती है। जाने कितने अवसरों पर उसने पति को अपमानित किया, पार्टियों में अपनी सहेलियों से परिचय तक नहीं करवाया। राहुल ने कई बार उसे टोका भी था मगर हर बार सुमिता ने दम्भ से कहा था-"पति के नाम का सहारा कमजोर औरतें लिया करती हैं।"

राहुल को खरी-खोटी सुनने की आदत पड़ चुकी थी। उसने कभी झंझट-बखेड़ा नहीं मोला बल्कि हमेशा उसे सहा, हमेशा उसने कहा- "तुम नादान हो, नासमझ हो ।” 

सुमिता टॉयलेट से निकली। अजय बाबू ने कहा-"तुम नहीं जाओगी।” 
सुमिता ने कहा- "डैडी प्लीज जाते समय मेरा मूड खराब न करिए। आपके लाडले दामाद के लिए डॉक्टर, अटेण्डेंट, नौकर-चाकर सब कुछ है, किसी चीज की कमी नहीं है, उसको सिर्फ़ आराम की जरूरत है, फ़ालतू बैठे-बैठे मैं क्या करूँगी ?"

- 'ह्वाट ? फ़ालतू ? वह बेचारा लाचार है, अपाहिज जैसा है और तुम कहती हो फ़ालतू क्या करोगी ?"

- "कम ऑन डैड, नाऊ यू टेल मी, मैं क्या करूंगी ? यहाँ बैठकर क्या करनाचाहिए ? .......आपको मालूम है ना जापान में कम्पीटिशन होनेवाला है, उसके लिए मुझे जज बनाया गया है ......बड़े भाग्य से ऐसे अवसर मिलते हैं, उसे क्या मैं व्यर्थ गँवा दूँ ?”

-“स्टुपिड ! लगता है तुम्हारा दिमाग वाकई ख़राब हो गया है, प्यार तो दूर हमदर्दी तक नहीं है उससे ? तुम उसकी धर्मपत्नी हो, तुम्हारा फ़र्ज क्या है यह भी सिखाना पड़ेगा ? . तुम्हें क्या करना चाहिए यह तुम्हें मालूम रहना चाहिए। क्या तुम्हें यही शिक्षा दी गयी थी ?.......... नहीं लगता है कि तुम उस माँ की बेटी हो जो मेरी ज़रा-सी छींक पर परेशान हो जाया करती थी।"

-"डैड प्लीज! मुझे रोकिए नहीं। मुझे जाना ही है। मैं आप जैसे सेण्टिमेण्टल नहीं हूँ और ना ही माँ जैसी दासी। मैं प्रैक्टिकल हूँ।"
सुमिता ने घड़ी देखी फिर तनफनाती हुई गाड़ी में बैठ गयी।

अजय बाबू का चेहरा लाल हो उठा, होंठ थरथराने लगे। दो कदम आगे बढ़कर उन्होंने चीत्कार किया- "सुमिता । तुझे मेरी कसम, अपनी भलाई चाहती हो तो मत जाओ, आई वॉर्न यू, मैं अपना आपा खो बैदूंगा, तेरा बुरा होगा।"

सुमिता चीख उठी-"सॉरी डैड, यू आर बैक-डेटेड, आपके विचार दकियानूसी है, आज की नारी पार्वती और लक्ष्मी बनकर नहीं जीना चाहती है। जमाना बदल चुका है......."

बेटी के आचरण से पिता इतने मर्माहत हुए कि बहुत देर तक एकान्त में बैठकर वे ख़ुद को टटोलते रहे। क्या उन्हीं के लाड़-प्यार से सुमिता बिगड़ गयी है ? क्या दरअसल समाज में बदलाव आ गया है ?

कुछ देर के बाद राहुल के कमरे में आकर अजय बाबू बोले-"आई एम सॉरी माई सन, मगर मैं तुम्हारा साथ दूंगा, मैं तुम्हारे पास रहूँगा, तुम अकेला नहीं महसूस करोगे।" 

राहुल ने कहा- "डैडी आप परेशान मत होइये। सुमिता भोली है, नासमझ है, बदल जायेगी, थोड़ा वक्त लग सकता है। बड़े बाप की बेटियाँ ऐसी ही हुआ करती हैं पर घर गृहस्थी बसाने के बाद सभी बदल जाती हैं । सुमिता नारी है, नारी के गुण अपने आप प्रकट होते हैं. समय की बात है।"

अजय बाबू बोले-" नहीं बेटे, तुम बहुत नेक इंसान हो, इतना कुछ होने के बाद भी तुम बुरा नहीं मान रहे हो। तुम्हारा ससुर होने के नाते मैं बेहद शर्मिन्दा हूँ, दुःखी हूँ।" 

अपना काम-काज छोड़कर अजय बाबू दामाद के घर ठहरे। पत्नी की मृत्यु के बाद वे अकेले पड़ गये थे। राहुल का साथ अच्छा लगने लगा। वे राहुल को आप बीती सुनाते, अख़बार पढ़कर सुनाते और तरह-तरह से उसका मन बहलाते, खुण रखने की कोशिश करते। 

सुमिता के लौटने का समय बीत गया पर वह नहीं लौटी। राहुल ने कहा- "डैडी जरा सुमिता की ख़बर जानने की कोशिश कीजिए।"

अजय बाबू ने बेरुखी से कहा- "उसे उसके हाल पर छोड़ दो, जहाँ भी होगी, ठीक होगी....... वह है किस काम की ? सिरदर्द ! सिरदर्द है लड़की। निकम्मी, निखट्टू, होपलेस।”

चार-पाँच दिन बाद फोन आया- "मैं सुमिता की सहेली हाँगकाँग से । सुमिता दो दिन और रुकेगी। उसकी तबीयत अचानक ख़राब हो गयी है। उसने मुझसे कहा मिस्टर राहुल कैसे हैं पूछ लो ।”

राहुल ने भड़ाँस निकाली- “उससे कह दो मैं दौड़ने लगा हूँ। आराम से हूँ, उसके बिना रह सकता हूँ। मेरे बारे में सोचना बन्द कर दे।" राहुल ने फोन काट दिया।

सहेली के फोन आने के बाद राहुल का तनाव बढ़ गया। उसने रात को खाना नहीं खाया। अजय बाबू से उसने कहा भूख नहीं है, वह सोना चाहता है। अजय बाबू ने उसके मन में मची खलबली को पढ़ लिया पर उन्होंने कहा कुछ नहीं।

बिस्तर पर लेटे-लेटे राहुल एक के बाद एक सिगरेट सुलगाता रहा और रात-भर सुमिता के साथ बिताए हुए क्षणों को याद करता रहा। उसे इस बात पर अफ़सोस होने लगा कि ना-नुकुर करते-करते उसने विवाह के लिए अपनी सहमति क्यों दे दी थी ? राहुल को याद आया कि एक दिन उसने सुमिता को तलाक देने की धमकी दे डाली थी मगर अगले ही क्षण उसे अहसास हुआ था कि सुमिता को त्यागना उसके लिए नामुमकिन है। तमाम खट्टी-मिट्ठी यादों से गुजरते हुए हठात् वह चीख उठा-"सुमिता सुमिता !” चीख सुनकर अजय बाबू उसके पास पहुँचे-"क्या हुआ ? क्या हुआ ?"

राहुल निरुत्तर । पूस की सर्दी मगर राहुल पसीने से तर-बतर पूरे कमर में सिगरेट का धुआँ कुहासा जैसा छाया हुआ था, घायल सैनिक की तरह दर्द से कराहता राहुल फर्श पर पड़ा हुआ था।

अजय बाबू ने सहारा देकर राहुल को उठाया। पानी पिलाया, नींद की गोली दी। वे बोले-"तुम्हारी दुर्दशा के लिए मैं दोषी हूँ। तुम्हारी तकलीफ़ मैं समझता हूँ। तुम चाहो तो दूसरी शादी कर सकते हो। तलाक दिलवाने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।”

अजय बाबू का कण्ठ अवरुद्ध हो गया था। अगले दिन दोपहर को राहुल की नींद खुली। पिछली रात की घटना को यादकर वह शर्मिन्दा हुआ, उसने ससुर जी से क्षमा माँगने का मन बनाया। राहुल ने नौकरानी से पुछा ससुरजी कहाँ गये हैं तो उसने कहा "बड़े साब सुबे-सुबे निकल गइन। कहके गइन आपका खियाल रखा जाय। मेमसाहब लौट आइन हैं।"

-"क्या ?? कब लौटी ?" राहुल चौंका।

-“दुई घण्टा पहिले । आप सोवत रहे। आपके सिरहाने बैठिन, हालचाल पूछिन, कापी-किताब, दवाई - बवाई सिगरेट-उगरेट सब कुछ देखिन, नहाय-धोय के आपका जगावत रहिन पर हम जब बोले कि आप रात भर जागे रहे तो फिर नहीं जगाइन अब मेमसाहब आपन कमरे में लेटी हैं।"

राहुल पुनः भावुक हो गया। थोड़ी देर बाद उसने फोन पर कहा- "डॉक्टर साहब! काइण्डली मुझे फिटनेस सर्टिफिकेट दे दीजिए, मुझे लगता है मैं दफ़्तर ज्वाइन कर सकता हूँ। मुझे मदद करने के लिए कोई न कोई रहेगा।"
 डॉक्टर ने कहा- “आप एकदम से फिट हो जाइए, जल्दी किस बात की है ?"
-"डॉक्टर! बिस्तर पर पड़े-पड़े मेरा मनोबल टूट रहा है।"
- "ओ० के० ! अपना ख्याल रखियेगा।" आधे घण्टे बाद अजय बाबू घर पहुँचकर राहुल से बोले -"सुना कल से ऑफिस जाओगे ? सुना सुमिता आ गयी है ?"
-"जी, ऑफिस जाना चाहता हूँ। ऊब गया हूँ। जाऊँगा। सुमिता का आना न आना दोनों बराबर ।" अत्यन्त मायूसी से राहुल ने उत्तर दिया।

अजय बाबू की आँखें छलछला आयीं। उन्होंने कहा- "सुनो। अपना चाय बागान और अपना सारा कारोबार ट्रस्ट के नाम कर रहा हूँ। एक करोड़ रुपये से एक ट्रस्ट का गठन कर दूँगा जिसका उद्देश्य होगा अशिक्षित बच्चों को शिक्षित करना। उसमें एक ट्रस्टी तुम भी होगे। मथुरा के एक आश्रम से मेरी बात हो गयी है। दस लाख आश्रम फण्ड में दान करूँगा। बाकी जीवन वहीं बिताऊँगा।"

राहुल ने आश्चर्य व्यक्त किया-"डैडी! आपको क्या हो गया है ? यह सब क्या करने जा रहे हैं? अचानक इतने सारे निर्णय ? आपको गम्भीरता से सोचना चाहिए। फिर सोच लीजिए।” अजय बाबू ने उसे अनसुनी कर दी और कहा-"मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ। तुम अपनी जिन्दगी जैसी चाहो वैसी बिता सकते हो, मैं कुछ भी कहने-सुनने नहीं आऊँगा।"

लगभग एक साँस में अपनी बात कहकर अजय बाबू कमरे से बाहर निकल गये।

सुमिता ने रास्ता रोका - "डैडी! डैडी! डैडी सुन तो लीजिए !” 
-"कमजोर बेटियाँ बाप के नाम का सहारा लिया करती हैं।” अजय बाबू ने गम्भीर स्वर में कहा।

एक नज़र बेटी को देख पिता ने मोटरकार पर पैर रखा ही था कि बेटी रोती हुई बोली- “डैडी ! मत जाइये। मत जाइये। आप नाना बननेवाले हैं।” 

-"क्या ??" पैर पीछे खींचकर अजय बाबू बोले।

पीछे से राहुल ने खुशी व्यक्त की- “थ्री चियर्स फॉर सुमिता, हिप, हिप हुर्रे!"
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© सुभाषचंद्र गांगुली
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* पत्रिका ' जाह्णवी ' सितंबर 1999 में प्रकाशित।
कहानी प्रतियोगिता में तीसरा पुरस्कार प्राप्त।

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