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Tuesday, September 6, 2022

कहानी- असली बी० ए०

कौशल किशोर उर्फ 'किंग' असली बी० ए० है मगर यह उसकी विडम्बना है कि है आये दिन उसे लोगों को यकीन दिलाना पड़ता है कि वह असली बी० ए० है।

जब उसने कैजुअल लेबर की हैसियत से दफ़्तर ज्वाइन किया था, बी० ए० पास होने के कारण लोग उसकी ख़ास कदर करते। लगभग सौ लेबरों के बीच वह अकेला ग्रेजुएट था। दो-चार इण्टर थर्ड क्लास और बाकी दर्जा आठ या उससे कम, लिहाज़ा वह अन्धो में कनवा राजा बन बैठा। राजा भी ऐसा-वैसा नहीं, अंग्रेजी जाननेवाला राजा था और इस वज़ह से लेबर इंचार्ज घनश्याम जिसे अंग्रेजी का तनिक ज्ञान न था राजा को 'किंग' कह के पुकारने लगा था। फिर घनश्याम की देखा-देखी कौशल के संगी-साथी भी किंग कहने लगे थे।

अपनी कमी को छिपाने के चक्कर में इंचार्ज किंग का इस्तेमाल करता, लिखा पढ़ी का ख़ास काम यानी नोटिंग, ड्राफ्टिंग, लेबरों का बिल आदि किंग से करवाता फिर उसे अपने हाथ से उतार लेता। किंग की इस अहमियत के कारण उसका अपना कद लेबरों के बीच इतना बढ़ा कि वह सबों का नेता बन बैठा। हरेक समस्या का निदान किंग की अगुवाई में होता। धीरे-धीरे उसका स्टेटस ऐसा बन गया कि उसे 'लेबर' का एक धेला काम नहीं करना पड़ता और न ही इंचार्ज उससे कोई काम लेता। औरों की अपेक्षा किंग को ड्यूटी भी अधिक मिलती यहाँ तक कि कदाचित् इंचार्ज अपनी कुर्सी पर ही बैठा रहता और किंग को मोर्चा सँभालने की जिम्मेदारी सौंप देता।

सात वर्ष कैजुअल रहने के बाद किंग चपरासी के पद पर रेगुलर हो गया। चपरासी बनने के बाद भी किंग को बी० ए० पास होने का सम्मान व फ़ायदा मिलता रहा। अमूमन लोग उससे चपरासी का काम नहीं लेते बल्कि उसके साथ हमदर्दी रखते और कहते 'आजकल नौकरियों की हालत ख़राब है क्या करें लोग ? बैक डोर से आना पड़ता है, जिसे जो मिल जाए वही सही, पर पढ़े-लिखों से ऐसा-वैसा काम कैसे करवाया जाय ? वैसे ही बेचारा भाग्य का मारा है।

नौकरी मिलने के तीन साल बाद किंग के साथ रेगुलर हुए कई लोग क्लर्क बन गये मगर किंग रह गया जबकि नियुक्ति के समय यानी सीनियरटी के हिसाब से उसका दूसरा नम्बर था। लोगों को कौतूहल हुआ। एक ने किंग से पूछा-"क्या बात है तुम्हारा प्रोमोशन क्यों नहीं हुआ ?"

-"मैंने इम्तहान ही कहाँ दिया था ? पत्नी की तबीयत खराब थी", किंग ने उत्तर दिया।

अगली मर्तबा फिर जब चार प्रोमोशन हुए और किंग का नहीं हुआ तो उसने वही उत्तर दिया, किन्तु तीसरी मर्तबा जब किंग की सर्विस पाँच साल की हो चुकी थी और बिना इम्तहान के सीनियरटी के आधार पर एक दर्जन प्रोमोशन हुए और किंग रह गया तब खलबली मच गयी। पूरे दफ़्तर में यह चर्चा का विषय बन गया। किंग ने साथियों को कनविंस करने की कोशिश की- "शायद मेरा करक्टर रोल (सी० आर०) ठीक नहीं है।"

भैरोशरण जिसका किंग से चोली-दामन का साथ था, ने तीखी प्रतिक्रिया की "झाँसा मारते हो ? ग्रुप डी का सी० आर० कहाँ लिखा जाता ?"

-"मेरा मतलब मेरे ख़िलाफ़ कोई ख़राब रिपोर्ट होगी" किंग ने अपना बयान बदला।

- "कब तक झाँसा मारते रहोगे बच्चू ? सच, सच बताओ मामला क्या है ?" भैरोशरण ने ऊँची आवाज़ में कहा।

किंग को उसकी बात पर बेहद क्रोध आया। उसने सोचा इस भैरोशरण के लिए उसने क्या कुछ नहीं किया, उसके लिए लिखा-पढ़ी करना, इंचार्ज की चिरौरी करना, प्रशासनिक अधिकारी के सामने गिड़गिड़ाना और विनती करना, यहाँ तक कि उसका काम दूसरे से करवाकर उसके खाते डाल देना। एक नम्बर का कामचोर, जुआड़ी, अपना नाम तक ठीक से लिख नहीं पाता उसकी संती बड़े भाई ने हाईस्कूल का इम्तहाल दिया था। और आज जब किंग आगे बढ़ गया है तब ऊँची आवाज़ में बोल रहा है।

किंग की इच्छा हुई कि यही सब कहते हुए दो-चार हाथ जमाकर दिमाग ठिकाने ला दे मगर मुश्किल से खुद को संयत रखकर उसने कहा- "मेरा मतलब मैं नेतागिरी करता हूँ, तुम सबों के लिए लड़ता रहा हूँ, तुम्हारी वकालत करते समय अधिकारियों के साथ ठीक से बर्ताव नहीं किया होगा, रेगुलर होने के बाद तो देख ही रहे हो कभी काम बँटवारे के मुद्दे पर, कभी वर्दी के मुद्दे पर प्रशासन को धमकी देता आया हूँ, खरी-खोटी सुनाता आया हूँ इस वज़ह से मेरे खिलाफ़ अधिकारियों ने मेरी सर्विस बुक में गुप्त रिपोर्ट लगा रखी होगी।"

मगर भैरोशरण को उसकी बात रास नहीं आयी। उसने कहा- "यह नामुमकिन है, ऐसा क्यों होगा भला ? तुमने ऐसा कुछ कभी किया भी तो नहीं और न कभी सस्पेण्ड हुए या भूख हड़ताल पर बैठे, दो-चार बार जुलूस में तुम आगे-आगे जरूर थे पर तुम्हारे पीछे हम सभी थे।" एक दिन किंग के कई साथी एकजुट होकर, किंग से बिना कुछ कहे प्रशासनिक अधिकारी से मिले। उनसे पता चला कि किंग हाईस्कूल पास नहीं है। इस समाचार से सभी लोग स्तब्ध, हतप्रद हो गये। अधिकारी महोदय से मिलने के बाद सबों ने आपस में विचार-विमर्श किया। सबों का मानना था कि अधिकारी महोदय ने झूठ बोला होगा क्योंकि प्रमोशन के लिए मात्र हाईस्कूल होना अनिवार्य है, किंग बी० ए० पास न सही इण्टर तो अवश्य होगा वर्ना वह इतना लिख-पढ़ कैसे लेता, धड़ाधड़ अंग्रेजी कैसे बोल पाता ? कईयों ने किंग को दुबारा कुरेदा और बोला- "हम तुम्हारे लिये क्या करें ? हम तुम्हारी मदद करना चाहते हैं।"

किंग खफा हो गया-"मैं बी० ए० पास हूँ। असली बी० ए०, नकलछाप नहीं हूँ, मेहनत करके डिग्री ली है.. ..मेरे ख़िलाफ़ एडवर्स रिपोर्ट अवश्य होगी, ऐसी रिपोर्ट गुप्त रखी जाती है, इस कारण अधिकारी महोदय ने तुम लोगों से नहीं कहा होगा...तुम लोगों को पूछने की ज़रूरत पड़ गयी ? मुझ पर विश्वास नहीं है क्या ? बाबू बनते ही तुम सबों का मुझसे भरोसा उचट गया ? अरे तुम्हारे कहने से थोड़े न तरक्की कर दी जायगी, मेरा जब होना होगा हो जाएगा ख़ुदा के लिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो, ऐसे ही मैं परेशान हूँ।"

मगर भैरोशरण चुप नहीं बैठा । वह अपनी प्रमोशन के सम्बन्ध में आयोजित पार्टी में किंग को सपरिवार निमन्त्रण देने किंग की अनुपस्थिति में उसके घर पहुँचा। उसने किंग की पत्नी से कहा-“भाभी! आप उन्हें समझाइए ना फ़ालतू नेतागिरी के चक्कर में अपना और आप सबों का नुकसान कर रहा है, नेतागिरी छोड़ दे, क्या रखा है। इसमें.......बी० ए० पास है, उसका तो कब का प्रमोशन हो गया होता मगर अब जब तीसरी मर्तबा सीनियरटी के आधार पर प्रमोशन हुआ तो उसमें भी वह रह गया।"

-"क्यों भाई साहब! उन्होंने ऐसा क्या किया ? बी० ए० पास हैं, शरीफ़ भी हैं, जहाँ तक मुझे मालूम है, शादी हुए चार साल हो गये इन्होंने वैसा कुछ नहीं किया और न ही इस बीच आपके दफ़्तर में किसी प्रकार की अशान्ति हुई। पर मुझे भी प्रमोशन न होने पर हैरानी होती है, शादी होते समय इन्होंने कहा था जल्दी बन जाएँगे, उसी बात पर ना-नुकुर करते-करते मैं राजी हो गयी थी वर्ना मैं ख़ुद एम• ए• हूँ, ईश्वर ने चेहरा-मोहरा भी ठीक-ठाक दिया है, मेरे पिता ने खर्चा भी किया था, चपरासी से कतई शादी नहीं करती.......चलिए आपके आने से कम-से-कम इतना तो पता चला कि पिछले तीन साल से लगातार प्रमोशन हो रहे हैं, वे तो मुझे यही कहते आ रहे हैं कि प्रमोशन नहीं हो रहा है, सब ठप्प हैं, सरकार ने रोक लगा रखी है ....... बड़ा झूठ ? झूठ या मक्कारी ? अभी ये घर आएँ ख़बर लेती हूँ।"

आशा का रौद्र रूप देख भैरोशरण सकते में आ गया। उसने कहा-"भाभी ! आपसे एक अनुरोध है, कृपया मेरा नाम न लीजिएगा। हमसे खामख्वाह दुश्मनी हो जाएगी, मैंने तो अपना समझकर आपसे कहा है. ..मुझ पर उसका काफ़ी अहसान है, उससे मैं आगे निकल गया, जो कम पढ़े-लिखे थे वे भी हाईस्कूल पास करके आगे निकल गये और वह बेचारा वहीं रह गया, मुझे बड़ा बुरा लग रहा है. ..अच्छा भाभी, मैं चलता यहाँ मैं आया था कृपया किंग से न कहिएगा, मैं उसे दफ्तर में दावत दे दूँगा, अगर वह ले आये तो आइएगा।"

-"ठीक है भाई साहब आपका जिक्र नहीं करूंगी, निश्चिन्त रहिए, आपने मेरा उपकार किया है, मैं आभारी हूँ.......आज मैं इनकी ख़बर लूँगी, इतना बड़ा झूठ! मेरा पति मक्कार ! हे भगवान ! किस जन्म के पाप की सजा दे रहे हैं ?"

मगर आशा ने ठण्डे दिमाग से काम लिया। किंग से कुछ कहे बिना अगले दिन वह पति के कार्यालय में पहुँची। उसकी बातों को सुनने के बाद प्रशासनिक अधिकारी ने सर्विस बुक व पर्सनल फाइल मँगवाकर किंग के हाथ का लिखा एप्लिकेशन दिखा दिया जिसमें किंग ने अपना क्वालिफिकेशन कक्षा आठ लिखा था, उन्होंने यह भी दिखा दिया कि कक्षा आठ के प्रमाण-पत्र के अलावा और कोई योग्यता प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं है।

आशा के पैरों के नीचे ज़मीन खिसकने लगी। उसकी आँखों के सामने गहन अन्धकार उतर आया। उम्मीद की किरण दूर-दूर तक दिखायी न दी। उसे इतना सदमा पहुँचा कि वह अपने पति से कुछ न कह सकी।

किंग को कुछ पता न था कि क्या कुछ घट चुका था मगर वह अपनी पत्नी की उदासीनता और मौन से परेशान हो गया। उसने तरह-तरह के कयास लगाए, घुमा-फिरा कर बार-बार उससे परेशानी का कारण पूछा, उसे रिझाने की कोई कसर नहीं छोड़ी मगर एक दिन जब दफ़्तर से लौटकर उसे पड़ोसी से पता चला कि उसकी पत्नी बेटे के साथ एक अटैची ढोती हुई कहीं चली गयी तो उसकी बुद्धि फेल हो गयी।

कमरा खोलते ही उसे एक कागज मिला जिस पर आशा ने लिख रखा था-"मैं अपने मायके वापस जा रही हूँ। फ़िलहाल लौटने का इरादा नहीं है। आपको असली बी० ए० होने का सबूत देना होगा। प्रमोशन न होने का सही कारण बताना पड़ेगा तब मैं दुबारा सोचूँगी वर्ना मैं आपको तलाक़ दे दूँगी। तलाक़ इसलिए दूँगी ताकि आपकी आधी तनख़्वाह मुझे मिलती रहे जिस पर मेरा अधिकार है क्योंकि आपने मेरे साथ धोखा किया है, आपको अपने किये की सजा मिलनी चाहिए, मेरी ज़िन्दगी के साथ आपने खिलवाड़ किया है। मैं आपको माफ़ नहीं करूंगी, मुझे आसानी से तलाक़ मिल जाएगा क्योंकि आपके दफ़र के ढेर सारे लोग हकीकत जान चुके हैं, उन्हें मालूम है कि आप 'किंग' नहीं बल्कि बेगर यानी भिखारी हैं, जी हाँ, आप भिखारी हैं। कृपया मुझसे अपने सुख-चैन की भीख माँगने न आइयेगा। हो सकता है कि मेरा जवान भाई आपके साथ बदसलूकी करे, उस अपदस्थ स्थिति में मैं आपको देखना नहीं चाहूँगी क्योंकि कल तक आप हमराह, हमसफ़र, हमनवाज़ थे।"

अचानक आये झंझावात से किंग का वज़ूद चरमराने लगा। इस विषम संकट से कैसे बाहर आये उसे समझ में नहीं आ रहा था। वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और ऐसी चुप्पी साध ली जैसे कि साँप सूँघ गया हो। कई दिनों के बाद वह अपने पुराने इंचार्ज घनश्याम से मिला। घनश्याम की हमदर्दी आशा के साथ थी। उसने कहा- "तुमने अन्याय नहीं, अपराध किया है बल्कि पाप किया है, तुम्हें जानना चाहिये था कि पाप का घड़ा आज नहीं तो कल फूटता ज़रूर है, तुम्हें जानना चाहिए था कि तुमने जो ताज़ पहन रखा है वह कभी-न-कभी उतरेगा ही और तुम किंग से बेगर बन सकते हो। वह तुम्हारी अर्धांगिनी बननेवाली थी, उससे फ़रेब नहीं करना चाहिए था भले ही तुम असली बी० ए० हो मगर यह तो कह देना चाहिए था कि तुम चपरासी हो, प्रमोशन दफ्तरी या रिकार्ड शॉर्टर में होगा, क्लर्क बनने में समय लग सकता है, हो सकता वह तुम्हें उसी तरह क़बूल कर लेती, और कुछ नहीं तो शादी के बाद तो सब कुछ साफ़-साफ़ कहना ही चाहिए था। तुमने जो कुछ किया उससे सदमा पहुँचना स्वाभाविक है। कहीं अगर उसने आत्महत्या कर ली तो मौत के लिए तुम जिम्मेदार होगे, बच नहीं पाओगे।"

किंग ने आर्त्तनाद किया- "नहीं ! नहीं ! हम ऐसा नहीं होने देंगे हम आशा के बिना नहीं रह पाएँगे. ....... घनश्याम भाई! आप हमारी मदद करिए, आप ही हमें बचा सकते हैं, आप मेरे इंचार्ज थे, आशा आपको मानती भी है, कम-से-कम उसे इतना तो बता ही दीजिए कि मैं असली बी० ए० हूँ, सकता है उसका गुस्सा ख़त्म हो जाए ।" -"ठीक है, अगर मेरे कहने से वह मान जाए तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती ? कल सुबह गोमती एक्सप्रेस से चला जाए, तुम मेरे घर आ जाना मैं तैयार रहूँगा।"

कौशलकिशोर उर्फ किंग अपने इंचार्ज घनश्याम को साथ लेकर ससुराल पहुँचा। उसे देख उसके घरवालों ने आँखें टेढ़ी कर ली और कहा कि आशा बात नहीं करेगी मगर घनश्याम के अनुरोध पर वे सुनने के लिए तैयार हो गये। किंग ने कहा- “मैं असली बी० ए० हूँ, यह रहा उसका सबूत, हाईस्कूल से बी० ए० तक के मार्कशीट और सर्टिफिकेट्स, आप लोग देख लीजिए।"

आशा ने बिना देखे तपाक से पूछा- "दफ़्तर के रिकार्ड में ये सब क्यों नहीं है ? ये सब फ़र्जी हैं, मैं किसी प्रकार के बहकावे में नहीं आती, असली बी० ए० हुए होते तो पहली बैच में प्रमोशन हो गया होता। इम्तहान में क्यों नहीं बैठे? औरों की आँखों मैं धूल झोंकिएगा, मैं आपके कार्यालय गयी थी, सारे कागज़ अपनी आँखों से देखा है।”

अप्रत्याशित हमले से किंग सकपका गया, उसके हाथ-पाँव फूलने लगे। वह असहाय होकर घनश्याम को देखने लगा, गुस्से से लाल आशा उठकर भीतर जाने लगी तो घनश्याम ने कहा- "भाभी। यही सब कहने यानी सच्चाई कहने के लिए मैं इसके साथ आया हूँ, सुन तो लीजिए इसके बाद फैसला करिएगा। गम्भीर मामला है, आप दोनों के जीवन का सवाल है।" आशा रुक गयी।

घनश्याम ने कहा- "सात साल कैजुअल रहने के बाद जब रेगुलर होने की नौबत आयी तो पता चला कि जिस तारीख़ को ये कैजुअल लेबर की हैसियत से आया था इसकी उम्र हाईस्कूल सर्टिफिकेट के मुताबिक पच्चीस वर्ष से दो महीने ज़्यादा थी लिहाज़ा वह नौकरी के अयोग्य था और वह नौकरी नहीं पा सकता था, कैजुअल में ज्वाइन करते समय ही ओवर एज था, उस समय मेरी जगह जो काम करता था उसे देख लेना चाहिए था। इसने कोर्ट जाने की बात कही पर मैंने इसे मना किया था क्योंकि पहले भी एक दो लोग ऐसे ही मामले में कोर्ट जा चुके थे पर कोर्ट ने लेबर के पक्ष में निर्णय नहीं दिया था। कहीं इसके केस में भी अदालत वहीं निर्णय सुना देती तो इसका दरवाज़ हमेशा के लिए बन्द हो जाता....... .. चूँकि किंग स्वयं मेरे रिकॉर्ड्स को हिफ़ाज़त से रखा करता था, इसने हाईस्कूल से बी० ए० तक के सारे दस्तावेज़ हटाकर एक नया एप्लीकेशन रख दिया था और साथ में एक ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टी० सी०) जिसे एक गाँव के स्कूल से रुपये लेकर बना लाया था, लगा दिया था। उस टी० सी० के मुताबिक कैजुअल में ज्वाइन करते समय इसका डेट ऑफ बर्थ पच्चीस साल दो माह के बजाए बीस साल हो गया और इसका रास्ता साफ़ हो गया. इसकी ज़िन्दगी बेकार हो जाती, दो रोटी के लिए इसे दर-दर ठोकरें खानी पड़ती, ऐसे ही बेचारा किस्मत का मारा था। मैंने अलग से मारना नहीं चाहा इसलिए मैंने चुप्पी साध ली बल्कि यूँ समझिए कि मैंने इसकी मदद की थी, किन्तु ये 'असली बी० ए०' है....... आज तक यह राज़ ही है, आज आप दोनों की भलाई के लिए यह राज़ खोलना पड़ा। पिछले दो साल से ये हाई स्कूल का इम्तहान दे रहा है। पहली बार गणित में फेल हो गया था, पिछले साल आपकी तबियत ख़राब हो जाने के कारण दो पेपर में बैठ नहीं पाया था, जिस दिन हाई स्कूल पास हो जाएगा प्रमोशन हो जाएगा, उसके बाद अपने आप प्रमोशन होते रहेंगे !"

आशा की माँ की आँखें छलछला आयीं। उन्होंने कहा- "बेटी ! अब तू अपना गुस्सा थूक दे, इसे माफ़ कर दे। जो कुछ हुआ उसे तू अपना दुर्भाग्य मान ले, उसने भी तो कम दुःख नहीं झेला, भाग्य में जो लिखा रहता है वही होता है, भगवान् ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा, वह पढ़ा-लिखा समझदार लड़का है गणित में भी पास हो जाएगा।" 

आशा के पिता ने अपनी नाराज़गी जाहिर की- "इसके बाप को तो सच कहना चाहिए था, उसकी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता तो उसे पता चलवा.........

घनश्याम बोल पड़ा - "बाबू जी ! इसके पिता को भी मालूम नहीं था, आपको सच कहता हूँ मेरे और इसके सिवा किसी को यह राज़ मालूम नहीं है, ढिंढोरा पीटने से इसकी नौकरी ख़तरे में पड़ सकती थी.....बेचारा सचमुच अभागा है, स्कूल की गलती के कारण हाईस्कूल सर्टिफिकेट में एक साल ज़्यादा लिख गया.......बेरोजगारी समस्या के चलते पच्चीस साल की उम्र तक नौकरी नहीं मिल पायी, कैजुअल लेबर में सात साल सड़ने के बाद जब चपरासी के पद पर रेगुलर होने हुआ तो पता चला ओवरएज है, नौकरी पाने के चक्कर में असली बी० ए० की डिग्री गँवानी पड़ी और कक्षा आठ दिखाना पड़ा। अब जो होना था हो गया. वह असली बी० ए० है, हाईस्कूल फिर से कर लेगा, प्रमोशन भी हो जाएगा।"

अपनी ख़ामोशी तोड़कर आशा ने कहा- "भाई साहब! आप सचमुच हमारे हितैषी हैं, हम आपके आभारी हैं, आपने इन्हें कम-से-कम एक दोष से मुक्त करा दिया........लेकिन नौकरी मिलने के बाद इन्हें 'किंग' बने रहने की क्या ज़रूरत थी! तुरन्त हाईस्कूल कर लेना चाहिए था । इन्होंने अपना अहंकार बरकरार रखा, झूठ दर झूठ बोला, मेरे साथ भी छल किया...अब इन्हें कहिए जल्दी से हाईस्कूल पास करके अपना प्रमोशन ले लें और 'असली बी० ए०' बोलना बन्द करें....मैं इन्तज़ार करूँगी।"
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© सुभाष चंद्र गाँगुली 
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( "कहानी की तलाश" कहानी संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2006)
* पत्रिका ' तटस्थ' जून 2002 मे प्रकाशित ।

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