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Friday, July 2, 2021

कहानी- परिचय


         रात्रि की नीरवता को चीरती हुई चली जा रही थी रेलगाड़ी। यकायक विकट आवाज के साथ गाड़ी रुक गई और शुरू हो गया मार-काट । 'मारो-मारो' 'बचाओ-बचाओ' 'भागो-भागो' आर्तनाद से पृथ्वी काँप उठी। किसी को कुछ सोचने-समझने का समय नहीं मिला। कुछ लोग भागने में सफल हो गए थे। कोई खिड़की से कूद गया, कोई धक्का-मुक्की कर दरवाजे से भाग निकला। सलमान कूद चुका था, किशन ने उसका पीछा किया।

दौड़ते-दौड़ते लगभग एक किलोमीटर दूरी पर वे दोनों विशाल वृक्ष की ओट में बैठ गए। दिल की धड़कनें धीमी होते ही सलमान ने पूछा 'अरे! तुम्हारा बच्चा?'

'ओ गॉड! उसका ख्याल ही नहीं आया। क्या करूँ?' किशन सोच में पड़ गया। खुद को तसल्ली देते हुए उसने कहा-'बच्चा सुरक्षित रहेगा। उसे कौन मारेगा? क्यों मारेगा? उसके जात-धर्म का पता किसे है?....... वे लोग क्या बच्चे को नहीं छोड़ेंगे?"

'क्या पता? उसकी तकदीर! या समझ लो तुम्हारा मुकद्दर ।'

'डायन भी एक-दो घर छोड़ देती है। साँप गर्भवती को नहीं डसता। वे लोग बच्चे पर जरूर रहम करेंगे। उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा।'

'वे बदमाश नहीं हैं, पागल हैं। सांप्रदायिक उन्माद सवार है उनपर। कमबख़्त किसी को नहीं बोंगे। बदमाश लोग अपने बाप तक को नहीं बखाते। अल्लाह ताला से भी नहीं डरते थे। अब अफ़सोस करने से क्या फायदा? जो होगा देखा जाएगा।"

'क्या बताऊँ! जरा सा ख़याल नहीं आया। एक बार चलकर देख

'दिमाग तो ठीक है ना? यहाँ तक शोर सुनाई दे रहा है....औलाद को अकेले लेकर क्यों चले थे? उसकी अम्मी ?"

'पता नहीं'....

'पता नहीं? क्या मतलब? बच्चों को सँभालना हम मर्दों के लिए नामुमकिन ही है? फजीहत कितनी है फिर माताएँ बच्चों को छाती से लगाकर रखती हैं खुद जान जोखिम में डाल देती हैं मगर औलाद को मरते दम तक नहीं छोड़तीं।'

'वह बच्चा मेरा नहीं है।

'क्या? तुम्हारा नहीं ?? किसका बच्चा ? उससे तुम्हारा क्या ताअल्लुक ?'

'लावारिस पड़ा था।"

'लावारिस पड़ा था? कहाँ ?'

'प्लेटफार्म में। कल गाड़ी लेट थी। मैं टहल रहा था। अचानक उसे देखा, टॉयलेट के बाहर, जमीन पर रो रहा था। मैंने गोद में उठा लिया। उठाते ही वह चुप हो गया। फिर किलकारी मारने लगा। मुझे अपने छोटू की याद आ गयी। हूबहू वही शक्ल, वैसी ही शक्ल मेरा छोटू उतना ही छोटा था। एक दिन उसे तेज बुखार चढ़ा, फिर....। क़रीब पंद्रह मिनट वह मेरी गोद में था। मैं वहीं खड़ा था, टॉयलेट के पास ही कोई, उसे लेने नहीं आया। मुझे घबराहट हुई। टॉयलेट के पास जाकर मैं चिल्लाया "किसका बच्चा?' 'किसका बच्चा?" कोई उत्तर न पाकर मैं हैरत में पड़ गया। मैं गला फाड़कर चिल्लाया, पूरा प्लेटफॉर्म छान मारा, स्टेशन मास्टर से पूछा, दुकानदारों से पूछा. जन-जन से पूछा. सबों ने कहा मालूम नहीं, फिर हार मानकर जहाँ से उठाया था वहीं लिटाने गया, लिटाते ही वह चीख उठा, रोने लगा.... ..मुझसे रहा नहीं गया। दया आ गयी।

'मनगढ़ंत कहानी लगती है....अभी तुमने कहाँ तुम्हारे छोटू से उसका चेहरा-मुहरा मिलता है, कहीं वह तुम्हारा अपना ही
नाजायज ।'

'क्या बेतुकी बात करते हो? बड़ा कमीना खयाल है तुम्हारा । तुमने कभी किसी दुधेमुँहे बच्चे को गौर से देखा है?... नहीं देखे होगे। ठीक से देखते तो ऐसी बात न करते....

..ठीक से देखो, जिस तरह अपनी संतान को देखते हो, हर बच्चे की सूरत एक जैसी नजर आयेगी, हर बच्चे की सूरत में तुम्हें अपनी संतान नजर आयेगी।

बातों से जजबाती लगते हो मगर यह नामुमकिन ही लगता है कि तुम नाली के कीड़े को इस हद तक प्यार करोगे....मामला यकीनन कुछ और होगा।

छोड़ो अब बवाल ख़त्म हो तो राहत की साँस लूँ.....घरवाली परेशान हो रही होगी।

सलमान किशन को शक की निगाहों से देखने लगा। काफ़ी देर की ख़ामोशी के बाद सलमान ने पूछा-ट्रेन में नकाबपोशों ने पूछा था तुम हिंदू हो या मुसलमान तो तुमने ईसाई कहा था।'

'तो? सच ही तो कहा था।'

'नाम से हिन्दू लगते हो।' 'हर ईसाई का नाम अंग्रेज जैसा नहीं होता है।

'यानी कि तुम हिन्दू ही हो, मेरा मतलब कि तुम हिंदू थे।' सलमान के चेहरे पर आये बदलाव को किशन ने चाँद की मद्धिम रोशनी में पढ़ा। उसका मोटा-ताजा, गोल-मटोल शरीर और उसकी थोड़ी देर की नीरवता के बाद सलमान ने पूछा- वे लोग किस दल के थे? 'हनुमान दल' या 'जटाधारी ?

'पता नहीं। मुझे क्या मालूम ? मैंने कोई नारा-वारा नहीं सुना था..... वे आतंकवादी रहे होंगे या पेशेवर गुंडे या आई० एस० आई० के रहे होंगे।"

'नहीं! वे 'हनुमान दल' के ही थे।' सलमान की आवाज कर्कश थी। 'रहे होंगे....हमें क्या लेना-देना?' किशन ने नर्मी से कहा।

'नारा नहीं सुना तुमने ? झूठ बोल रहे हो।'

किशन ने चुप रहने में अपनी भलाई समझी।

देखते-देखते चाँद की रोशनी धीमी पड़ गई। सुबह का उजास दिखने लगा। दोनों ने वहाँ से चलने का मन बनाया। सलमान ने पूछा-'बच्चे को नहीं लोगे?"

"छोड़ो! कहीं झंझट में न फँस जाएँ।"

'कैसा झंझट? तुमने जब उसे ले जाने का मन बनाया था तो तुम्हें लेकर जाना चाहिए। ले जाओ। क्यों लावारिस होने के लिए मजबूर करोगे?....तुम नेक इंसान हो। अल्लाहताला तुम्हारा भला करेगा।'

'ठीक कह रहे हो सलमान मियाँ हमें ले जाना चाहिए वर्ना बाद में मन ख़राब होगा, पछताऊँगा। तुम भी चलोगे ना मेरे साथ ?'

"बेशक। मैं नेकी कर नहीं सकता लेकिन राह का साथी तो बन सकता हूँ?"

वे दोनों भागते-भागते ट्रेन के पास पहुँचे। चौतरफा पुलिस और रेलकर्मियों की आपाधापी देख चिंतित हो गए फिर ढाँढ़स बाँध आगे बढ़ते गए। गाड़ी के एक-एक डिब्बे के भीतर झाँककर किशन ने बच्चे को ढूँढ़ा मगर वह दिखाई नहीं पड़ा। हैरान, परेशान किशन इधर-उधर दौड़ने लगा। ज्योंही उसकी निगाहें लाशों के अंबार पर पड़ी वह चकित हुआ। दो-चार लाशों को हटाकर बच्चे को निकाल कर वह फूट-फूट कर रोने लगा। सलमान की ओर देखकर उसने कहा-'उन जल्लादों ने बच्चे की हत्या क्यों की? बोलो इसकी जात क्या थी? किस संप्रदाय का था? इसने किसका क्या बिगाड़ा था?.... कहीं कोई ढाँचा गिरादिया गया है तो हम क्या करें? हमें क्या लेना-देना? इस बच्चे से उस ढाँचे का क्या संबंध था ? पागल हो गये हैं लोग.....हमारी जिंदगी तो रोटी की चिंता में ही बीत जाती है। एक दिन काम न करें तो भूखे मर जाएँ। मंदिर बने या मस्जिद ठेंगे पे जाए...नेताओं को वोट की चिंता है, देश की चिंता किसे है? आपस में लड़ने-झगड़ने एक दूसरे का नुकसान करने से देश मजबूत होगा क्या?'

सलमान ने सिर हिलाकर सहमति जतायी। बच्चे को गौर से देखकर किशन रो पड़ा। ज्योंही वह बच्चे को लाशों की बगल में लिटाने लगा एक सिपाही उसके पास पहुँच गया। उसने पूछा-'यह बच्चा तेरा है?' किशन डर के मारे इधर-उधर ताकने लगा। सिपाही दहाड़ा-' बोलता क्यों नहीं? गूँगा है क्या? बोल यह तेरा बच्चा है? तेरा है तो ले जा इसे।' किशन ने सिर उठाकर सिपाही को देखा, सिर हिलाकर ना का संकेत दिया और फिर उसे लिटाने लगा। सिपाही को गुस्सा आया, उसने किशन की पीठ पर लाठी जमा दी। सिपाही ने किशन से फिर कहा 'देखता क्यों है? तेरा बच्चा है तो ले जा इसे।'

किशन तब भी चुप था। सिपाही उत्तेजित हो उठा-'अबे क्यों है? चुप जब साला रो सकता है तो बोल भी सकता है।

उसके बालों को पकड़ कर सिपाही ने एक तमाचा जड़ दिया। उसका पूरा शरीर काँप उठा। उसने भागने की कोशिश की मगर वह दो ही कदम चला था कि सिपाही ने उसे धर दबोचा। कोई उपाय न देख वह बिलबिलाया- 'यह मेरा...मेरा बच्चा नहीं है। वह लावारिस पड़ा था।'

'क्या ?? लावारिस पड़ा था? बड़े आये हैं महात्मा, लावारिस के लिए सिर फोड़ रहा है।' "सच कह रहा हूँ, यह बच्चा मेरा नहीं है। हमें प्लेटफार्म पर पड़ा मिला था।"

'अच्छा तो तूने चुराया था? बेचने जा रहा था?' सिपाही ने एक घूँसा जमा दिया।

सिपाही का प्रहार इतना जबरदस्त था कि किशन का सिर भन्नाने लगा। उसने रोते-कलपते कहा-'मैं सच कह रहा हूँ, मैंने चोरी नहीं की, मैं चोर नहीं हूँ।'

'साला तू चोर नहीं है तो क्या साधु है? चेहरे से लगता है हजारों जूते पड़ चुके हैं इन गालों पर, तू साला ऐसे नहीं मानेगा, लातों का देव बातों से नहीं मानता।'

दो-चार लाठी मार कर सिपाही ने किशन को पुलिस वैन में बिठा दिया।

इस बीच सलमान ने सिपाही को कन्विंस करना चाहा- किशन निहायत शरीफ़ और नेक इंसान है। ग़रीब आदमी और नेक, कोई नहीं मानता है मगर दरअसल वह नेक इंसान है, उसके मन में नापाक इरादा नहीं था। वह इंसान नहीं फरिश्ता है, खुदा के लिए उसके साथ जुल्म न करें, छोड़ दें।'

"अच्छा तो तुम भी हो इसके गिरोह में? चलो।' सलमान की गर्दन पकड़ कर सिपाही ने वैन में ठेल दिया।

अगले दिन थानेदार ने सलमान और किशन दोनों से पूछताछ की। कुछ देर जिरह करने के बाद थानेदार ने सलमान को रिहा कर दिया। फिर थानेदार ने किशन से जिरह करना शुरू किया

"तुम शादी-शुदा हो?"

'जी साहब।'

'बच्चा नहीं है?' हैं। दो लड़के, एक लड़की ।'

'क्या करते हो?"

'ढाबे में काम करता हूँ।'

'खुद का ठिकाना नहीं है, बच्चे भी हैं, पेटभर खाना भी नहीं दे पाते होगे, लावारिस को क्यों ले जा रहे थे? बच्चा बेचने का धंधा करते हो क्या?'

अजीब सा आरोप सुनकर किशन स्तब्ध हतप्रभ । वह चीख उठा 'धंधा-वंधा नहीं करता हूँ...मैं क्या करता? क्या करता? लावारिस पड़े रहने देता? जैसे जानवर के बच्चे पड़े रहते हैं?'

'तो और क्या कारण था?

सर! यह सच है कि मैं अपनी संतानों की परवरिश ठीक से नहीं कर पाऊँगा।, सच है कि उन्हें मैं भरपेट आहार भी नहीं दे पाता मगर सर। मैं होता कौन हूँ पेट भरने वाला? दुनिया में सब अपनी-अपनी तक़दीर लेकर आते हैं। जहाँ हम पांचजन एक टाइम खाना खा लेते हैं वहाँ उसके लिए भी एक मुट्ठी अनाज निकल आता।'

'बातें अच्छी कर लेते हो। यह बताओ यह बच्चा क्या दुनिया का पहला बच्चा है जो लावारिस पड़ा हुआ था ? जाने कितने अवैध बच्चे सड़कों और कूड़ेदानों में रोजाना पड़े मिलते हैं, तुम किस-किस को ले जाओगे?"

'सर! इससे पहले मैंने कभी किसी को सड़क पर नहीं देखा था।" 'सारे बच्चे जो लावारिस होते हैं अनाथालय भेज दिए जाते हैं। अनाथालय में बेहतर देखभाल होता, पढ़ाई-लिखाई होती. तुम उसे क्या दे पाते? साफ़-साफ़ बताओ तुम्हारा क्या इरादा था वर्ना तुम्हारे साथ कड़ाई की जाएगी, तुम्हारे गलत काम के लिए तुम्हारा परिवार सड़क पर आ जाएगा।' सर! मैं उस बच्चे को वह सब दे सकता था जो अनाथालय तो क्या इस दुनिया की बड़ी सी बड़ी संस्था नहीं दे पाती, मानवाधिकार आयोग नहीं दे सकता। उसे मैं माँ-बाप का प्यार दे सकता था। इंसान होने का परिचय दे सकता था। उसका अपना सामाजिक परिचय होता। कोई उसे लावारिस नहीं कहता।

'तुम भावुक बातें भी कर लेते हो। तुम्हारी बातें कहानी लगती हैं। दुनिया में न जाने कितने धनी लोग निस्संतान रह जाते हैं परन्तु अवैध, लावारिस बच्चों को फिर भी गोद नहीं लेते हैं और तुम ?....तुम्हें और एक मौका दिया जा रहा है, तुम अगर सब कुछ सही बता दोगे तो तुम्हें छोड़ • दिया जाएगा। बताओ बच्चे को किसे बेचने जा रहे थे? गिरोह का सरदार कौन है? क्या नाम है उसका ? कहाँ रहता है? बोलो वर्ना जिंदगी भर जेल में सड़ोगे।

'सर! मैं जो कुछ कहूँगा सच कहूँगा। आप मेरे बारे में सब कुछ जान लीजिए, चाहेंगे तो इनक्वारी करवा लीजिएगा फिर जैसा उचित समझिएगा कीजिएगा। मेरे भाग्य में जो बदा है वही होगा। निर्यात को कौन बदल सकता है ?... मैं खुद लावारिस हूँ। मुझे मेरे माँ-बाप की जानकारी नहीं है। कानपुर के हिन्दू अनाथालय में मैं बड़ा हुआ। वहीं रह कर मैंने पढ़ाई के लिखाई की। मैं बी० ए० पास हूँ। मैने नौकरी पाने की भरसक कोशिश की थी। मिली नहीं। 'समाज कल्याण-बाल विकास पुष्टाहार विभाग में मैंने 'सेवक' के पद के लिए अप्लीकेशन डाला था। जब मुझे पता चला कि कइयों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है और मुझे कॉल लेटर नहीं मिला तब मैंने दफ़्तर में संपर्क किया। मुझे कहा गया कि मेरा आवेदन-पत्र अधूरा है इस कारण उस पर विचार नहीं किया गया। अधिकारी से जब • फॉरवार्ड, ओ० बी० सी०, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति ?" मैं पूछा कि उसमें क्या कमी है तो उन्होंने कहा- 'तुम किस जाति के हो ? हक्का-बक्का रह गया। मैं क्या कहता? कल जिस बच्चे को मैंने उठाया था वह बड़ा होकर क्या कहता? स्कूल में पढ़ने के लिए अनाथालय के बच्चों को यह दिक्कत नहीं आती है। एडमिशन के समय एडमिशन फॉर्म में माता-पिता के कॉलम के आगे अनाथालय के प्रबंधक का नाम लिख दिया जाता है लेकिन नौकरी के फॉर्म में ऐसा नहीं होता है....हर हाल में मैं इस समस्या का हल चाहता था क्योंकि मैंने महसूस किया कि यह समस्या सिर्फ़ मेरो समस्या नहीं है बल्कि उन तमाम अनाथों की समस्या है जो अनाथालय में रह कर पढ़-लिख लेते हैं....अनाथालय के प्रबंधकों से मैं मिला तो वे बोले "समाज कल्याण अधिकारी से मिलो।" समाज कल्याण अधिकारियों से मिला तो वे बोले किसी भी नियमावली में इस विषय पर कुछ भी खुलासा नहीं किया गया है। मैंने कई जगह अप्लीकेशन डाला मगर परिचय हीनता के कारण डिग्री दिखाने के बावजूद मुझे हर जगह ठोकर खानी पड़ी। जिस किसी से मैं अपनी समस्या सुनाता वह उत्सुकता से सुनने के बाद हमदर्दी जता कर 'बेचारा' कहता। 'बेचारा' शब्द के सिवा समाज के पास कुछ न था.... दर-दर ठोकरें खाते, 'बेचारा' 'बेचारा' सुनते मैंने जाना कि जिंदगी में रोटी-कपड़ा-मकान से ज्यादा जाति अहमियत: रखती है। जाति और संप्रदाय से ही इंसान का परिचय इंसान की हैसियत से होता है। इसीलिए मैंने अब जाति अपना ली है, धर्म अपना लिया है। मेरे पास इंसान होने का परिचय है।.....मैं अपना परिचय उस परिचयहीन बच्चे को दे सकता था, कोई उसे लावारिस या अवैध न कहता। उसको त्रासद जिंदगी बिताने से बचा सकता था...मैंने हमेशा के लिए अतीत को दफना दिया है क्योंकि मेरा अतीत जानने के बाद समाज मुझे चैन से जीने नहीं देगा। आज मजबूरी में आपसे ये सब कहना पड़ा।'

उसकी बातों को ध्यान से सुनने के बाद थानेदार ने पूछा- एक आखिरी सवाल। अगर तुम उस लावारिस को लेकर घर पहुँचते तो क्या तुम्हारी पत्नी उसे क़बूल कर लेती? क्या उसे संदेह नहीं होता कि कहीं वह बच्चा तुम्हारा अपना ही तो नहीं?'

किशन ने कहा-'एकबार मेरे दिमाग में यह बात जरूर आयी थी मगर क्या है कि मुझे उस पर पूरा भरोसा है। वह भी अनाथालय की है। परिचय की समस्या से भलीभाँति वाकिफ़ है।

किशन फूट-फूट कर रोने लगा। दो दिन और दो रात के शारीरिक व मानसिक तनाव से कमजोर किशन अपना सिर थामकर जमीन पर बैठ गया।

एक सिपाही ने सैलुट मारकर थानेदार को एक कागज दिया। कागज पढ़कर थानेदार, चौक उठा-किशन! वह बच्चा अभी जीवित है।'

'कहाँ है सर! कहाँ है! सच! एक बार दिखा तो दीजिए! जी भर देख लूँ उसे।'

'तुम चाहो तो उसे ले जा सकते हो किंतु एक शर्त पर.... अगर उस बच्चे का कोई दावेदार आये तो तुम्हें उसे लौटाना पड़ेगा।'

'सर! शर्त मंजूर है....आप महान हैं।'

'मैं नहीं, तुम ।


© सुभाष चन्द्र गांगुली
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** कहानी संग्रह " सवाल तथा अन्य कहानियां " 
( तृतीय संस्करण 2013 ' से ) ।
**' गंगा यमुना ' पाक्षिक 23/11/1996
**' लावारिस ' नाम से प्रकाशित ।
कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां :---------
** " ' परिचय ' उन अनाथों की समस्या से अवगत कराता है जिनको कानून या समाज की नजरों में ' बेचारा ' ही माना जाता है ।यह वाकई शोचनीय है कि एक पढ़ लिखा अनाथ अपनी परिचयहीनता के कारण समाज में एक सम्मानित स्थान नहीं बना पाता है। इसी प्रकार के अन्य ज्वलंत समस्याओं को इन कहानियों के माध्यम से उठाया गया है । "
--- " चंद्रशेखर तिवारी
( सवाल तथा अन्य कहानियां' संग्रह की समीक्षा ' आजकल ' पत्रिका - अप्रैल 2004 में चंद्रशेखर तिवारी द्वारा की गई समीक्षा से )

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