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Saturday, July 3, 2021

कहानी- आभासी दुनिया


फेसबुक पर अपने दोस्तों को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दे रहा था तभी देखा कि आज मेरे दोस्त अजय की शादी का सालगिरह है। अजय की बेटी ने माता-पिता का फोटो, बधाई संदेश के साथ पोस्ट किया था। ढेर सारे लाइक्स और तरह-तरह के कमेन्टस 'नाइस कपल' 'मेड फॉर इच अदर' आदि से पटे पड़े हैं। मैं और अजय दोनों एक ही कार्यालय में कार्यरत थे। एक समय दोनों एक ही कमरे में बैठते रहे अगल-बगल करीब साल भर बैठे थे। अच्छी दोस्ती हो गई थी। बाकी चलते-फिरते हाय-हैलो हो जाया करता था। बच्चों की शादियों के सिलसिले में आना-जाना हुआ था, एक दूसरे के घर।

अभी थोड़े दिन पहले अजय की बेटी मेरे फ्रेन्ड लिस्ट में शामिल हुई थी। मुझे नौकरी से रिटायर हुए छह वर्ष हो गए हैं, अजय रिटायर हुआ था मुझसे चार साल बाद।

रिटायरमेन्ट के बाद अजय के साथ मेरी न कभी मुलाकात हुई और न ही फोन पर बातचीत । उससे मिलकर मैरिज एनिवर्सरी की बधाई देकर सरप्राइज देने का एकबारगी मेरा मूड बन गया।

अपनी तीस साल पुरानी 'प्रिया' स्कूटर पर सवार होकर चल पड़ा। रास्ते में आधा किलो मिठाई और काँच का एक फ्लॉवर पॉट खरीदते हुए उसके मोहल्ले में पहुँचा।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि किधर जाना है, बाँये जाना है कि दाँये, और आगे जाना है कि पीछे छूट गया है। करीब बीस साल पहले आना हुआ था एक बार, बेटी की शादी का कार्ड देने।नरेश उन दिनों यह मोहल्ला बस रहा था। घनी आबादी है। कहीं कोई जगह खाली नहीं है। विशाल मोहल्ला अनेक पूछताछ कर इस गली से उस गली भटकते हुए एक मोटर कार पर मेरी निगाहें ठिठक गईं सोचा ऐसी ही तो गाड़ी थी मेरे दोस्त के पास। बिल्कुल ठीक सोचा, 'मदर मेरी' की छोटी सी संगमरमर की मूर्ति गाड़ी के भीतर दूर से चमक रही है।

छठे वेतन आयोग का एरियर करीब साढ़े तीन लाख रूपये मेरे दोस्त को मिले थे, उसीसे उसने यह गाड़ी खरीदी थी। गाड़ी के पीछे नम्बर प्लेट के नीचे मोटे-मोटे अक्षरों में उसका नाम और दफ्तर का पदनाम लिखवाया था, अभी भी लिखा हुआ है।

आस-पास के मकानों के नेम प्लेट्स देखने के बाद एक पान की दुकान पर दोस्त का नाम बताकर पूछा कौन सा मकान है तो उसने बताया 'इधर इस गली में टर्न करिए तीसरा मकान तीन मंजिला।'

-'अन्दर गाड़ी नहीं जाती ?' मैंने पूछा ।

-'जायेगी। आपका तो स्कूटर है। पतली गली है। सबकी मोटर कारें यहीं पर खड़ी रहती।'

-'अच्छा।  थैंक यू ।' कहके मैं गली के अन्दर गया।

दो कमरे का मकान था, क्या से क्या बन गया। दो-तीन बार काल बेल बजाने के बाद फाटक खुला। कुछ पल अवाक होकर देखने के बाद वह तुम ! कितना बदल गया है तुम्हारा चेहरा इतनी बड़ी-बड़ी मूँछें, बोला-'अरे' सफेद बाल, मैं तो पहचान ही नहीं पाया था। आओ, आओ बैठो।'

मैं सोफे पर बैठ गया। फ्लॉवर पॉट और मिठाई का पैकेट सामने मेज पर रखा। उसने कहा 'कितने खूबसूरत थे तुम, काले काले घुंघराले बाल, स्मार्ट, तन्दरूस्थ । अब कैसे हो गए हो।'

उम्र अपना काम करेगी न? उम्र किसी को नहीं छोड़ती। ऊपर से शुगर की बीमारी।

'कम से कम मूँछे तो निकाल ही दो। क्लीन शेव ही अच्छे लगते थे।' - 'रहने भी दो यार, एक वही तो बची है दिखाने के लिए।' उसने ज़ोर का ठहाका मारा। फिर इधर-उधर की दो-चार बातों के बाद मेज पर रखे सामान दिखाकर पूछा-'कहीं जाना है क्या?" -"नहीं। यहीं आया हूँ। भाभी कहाँ इतनी देर से? बुलाओगे नहीं

-"स्कूल से लौटी फिर मन्दिर निकल गई। बैठो आ जाएगी।'

-'किस मन्दिर में ? "

-'शाहगंज में है।'

-'काफी दूर है यहाँ से, मोटर कार तो बाहर खड़ी है, कैसे गई?"

-रिक्शे से उसे रिक्शा ही पसन्द है।' -'अकेली या किसी के साथ?"

-'अकेले ही घूमती है। मैं कहाँ कहाँ उसे लादकर घूमता रहूँ। पहले ही नहीं किया अब तो रिटायर हो गया...तुम्हें भाभी की इतनी चिन्ता तो तुमही आ जाया करो।"

वह ठहाका मारने लगा। मैंने भी ठहाका लगाते हुए कहा 'तभी तो आया हूँ ना' फिर कुर्सी से उठकर गिफ्ट का सामान उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा "हैपी मैरिज डे! ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ। बार-बार आए यह दिन । स्वस्थ मस्त रहो!"

मैंने काफी देर तक हैंड शेक किया किन्तु जिस गर्मजोशी से मैंने उसे बधाई दी उतनी ही उदासीनता से उसने 'थैंक्स' कहा, फिर पूछा 'अचानक याद कैसे आ गया ?" मैंने कहा, तुम्हारी बेटी के फेसबुक से।' उसने कहा 'कल बिटिया आयी थी, जोर-जबरदस्ती हम दोनों का फोटो खींच लिया। आज शाम फिर आएगी केक लेकर, बोलकर गयी।"

-'अच्छा काम किया बेटी ने सेलिब्रेट तो करना ही चाहिए।'

-'अब इस उम्र में क्या बर्थ डे, क्या मैरिज है। सब बकवास।"

मैं जरा खिन्न हुआ। मैंने कहा 'उम्र कहाँ से टपक गई बीच में। मैरिज डे तो स्पेशल डे होता ही है। मैं हर साल मनाता हूँ।' 'मैंने शुरू-शुरू में दो-तीन बार मनाया था। सब फालतू, खुश होने का क्या है इसमें?'

मैंने कहा 'जीवन एक जीने की कला है। जीवन में सुन्दर-असुन्दर कुछ भी नहीं है, उसे अपनी जो नजरिया देते हैं। खुश होने के लिए किसी बड़ी चीज की जरूरत नहीं होती है। छोटी-छोटी चीजें ही खुशी दे सकती, खुश होने की वज़ह एक फूल, एक बच्चे की हँसी, एक नयी कमीज, किसी के हाथ का बना कुछ, मैरिज डे पर पत्नी की खुशी, कुछ भी।

उसने कहा 'बूढ़े हो गये हो मगर अभी भी रोमान्टिक और मॉडर्न बने हुए हो, आखिर कवि जो ठहरे। फिर ठहाका मार कर कहा 'क्या जमाना आ गया है! लोग इतना मार्डन हो गये हैं कि बहू बेटे भी सास ससुर को मैरिज डे पर बधाई देने लगे हैं। आज कनाडा से बहू ने फोन पर बधाई दी। बेटे ने भी अपनी माँ को बधाई दी।

मुझे हँसी आ गई। मैंने कहा 'तो इसमें गलत क्या? बुरा लगने का क्या है? तुम्हारी शादी हुई थी न? सारी दुनिया बधाई दे सकती है पर बहू-बेटे क्यों नहीं दे सकते? इसमें बेहयाई का क्या? बड़े हो जाने पर बच्चे दोस्त जैसे हो जाते हैं। जमाना बदल गया है। तुम्हें सोच बदलने की ज़रूरत है। हर आदमी को समय के साथ जीना सीखना चाहिए, उसी में सुख मिलता है।'

उसकी बेतुकी बातों से मैं अपसेट हो गया। जिस उत्साह के साथ मैं आया था, सोचा था कि वह बहुत खुश होगा सब गुड़ गोबर हो गया। मैं उठ खड़ा हुआ, फिर बोला 'अच्छा मैं चलता हूँ...कभी आना मेरे घर भाभी के साथ। उसने कहा 'अरे बैठो ना थोड़ी देर और मिसेज आ जाएगी अभी, चाय पीकर जाना।'

-'नहीं चलने दो। फिर कभी मेरा घर दूर है। मैंने कदम बढ़ाया। उसने कहा 'अरे बैठो दो मिनट आज एक मजेदार बात हुई।'

-'क्या? जल्दी बोलो।"

-'आज मार्निंग वाक से लौटने से पहले ही मिसेज स्कूल जा चुकी थी। घर लौटा तो उसका फोन आया, बोली 'आपके स्मार्ट फोन पर मैंने मेसेज भेजा है, देख लीजिएगा।' मैंने देखा। अपना एक फोटो भेजा, साथ में मैसेज भी। खूब सज-धज कर आज वह स्कूल गई थी। मैसेज में लिखा था 'यह नयी साड़ी है। पहले खरीदी थी आज के लिए आपको पहले नहीं दिखाया था सरप्राइज देने के लिए स्कूल के टीचरों ने ढेरों बधाइयाँ दी। उन सबों ने कहा कि साड़ी आपके ऊपर खूब फब रही है, बहुत सुन्दर लग रही हैं।'

मैंने कहा 'वाह ! फैनटैसटिक ।'

"अरे आगे तो सुनो ... स्कूल से लौटकर टीचर जी ने पूछा मैंने मैसेज पढ़ा था या नहीं। टी०वी० देखते-देखते मैंने कहा पढ़ा। फिर वह बोली 'मैंने सोचा आपके फोन में मेरा फोटो नहीं है, आप जब-जब मुझे देखना चाहेंगे देख लेंगे,

किसी दोस्त को दिखाना चाहेंगे तो... बताओ!'

'वाह! इन्टरेस्टिंग! भाभी काफी जिन्दादिली हैं। ज़रा मुझे भी दिखाओ फोटो!"

उसने हँसते हुए कहा 'औरतें भी क्या-क्या सोचती हैं...और कोई काम नहीं बैठकर पुरानी बीबी का फोटो देखें और लोगों को दिखाऊँ, पागल हूँ।

क्या ! मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने डिलिट कर दिया। "डिलिट कर दिया ?" मैंने आश्चर्य व्यक्त किया।

पता नहीं क्यों मेरा मन बोझिल हो गया। अब मेरा एक पल भी रूकने का मन नहीं था। में उठकर फाटक तक आ गया। उसने कहा 'अरे थोड़ी देर और रूक जाते, अभी आ जाएगी वह थोड़ी देर में आती ही होगी। शाहगंज में एक प्राचीन शिव मन्दिर है, वहीं जाती है हर मैरिज डे पर। उसकी उस मन्दिर में बहुत आस्था है। पहले हम शाहगंज में किराये के मकान में रहते थे।' फाटक से निकल कर मैंने स्कूटर स्टार्ट किया। उसने फिर कहा 'थोड़ी देर रूक जाते।'

'नहीं। वाइफ वेट कर रही होगी। शाम की चाय हम दोनों साथ पीते हैं। मेरे न रहने पर वह अक्सर बिना चाय पीये रह जाती है। मैं आगे बढ़ गया।

उसकी यह बात कि उसने पत्नी की तस्वीर डिलिट कर दिया मुझे भीतर से हिलाकर रख दिया था। मैं बहुत देर तक चिन्तन-मन्थन करता रहा। कैसी-कैसी पेंचीदगी के साथ चलती रहती है जिंदगी । इस विश्वास साथ कि उसका पति उसे दिलोजान से चाहती हैं, वह सम्पूर्ण समर्पण के साथ जीवन बीता देती है, यहाँ तक की पति का साथ छूट जाने पर भी उसकी स्मृतियों के साथ वह बाकी जीवन जी लेती है और उधर वह पति...उफ्फ!

रात को सोने से पहले मैंने अपना फेसबुक खोला तो देखा एक नया फ्रेन्ड रिक्वेस्ट नाम से समझ में नहीं आया तो प्रोफाइल खोला। अरे यह तो अजय की पत्नी है। एकदम नया एकाउन्ट एक भी फ्रेन्ड नहीं था। मात्र एक ही पोस्ट जिसके साथ कुल छह फोटो थे एक पति के साथ जिसे उसकी बेटी ने पहले पोस्ट किया था, कुछ टीचरों के साथ, एक अकेले का जिसमें वह सचमुच सुन्दर लग रही थी और साड़ी भी खूब खिली थी, उसी फोटो को अजय ने डिलिट किया होगा और सबसे टॉप पर था फ्लॉवर पॉट के साथ उसकी सेल्फी। पोस्ट पर उसने लिखा था 'विशिष्ट व्यक्ति के इस अनमोल गिफ्ट से यादगार बन गया है आज का दिन।

सभी तस्वीरों को मैंने लाइक कर दिया।

थोड़ी देर के लिए मैं भावुक हो उठा। मैंने फ्रेन्ड रिक्वेस्ट स्वीकार किया और उसके मैसेज बाक्स में जाकर लिखा- 'यहाँ हम सब दोस्त अपनी-अपनी खुशियाँ बाँटते हैं। एक दूसरे की प्रशंसा करते, खुश रहते। 'आभासी दुनिया' में आपका हार्दिक स्वागत है। सदा प्रसन्न रहें यही कामना करता हूँ।"

© सुभाष चंद्र गागुली
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" मोक्षदायिनी " कहानी संग्रह में शामिल
किया गया । जुलाई, 2021 

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