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Friday, July 16, 2021

कविता- भुख्खे तुई कांदिस ना....


नन्हा सा एक लड़का
नन्ही सी एक लड़की
थामे गाड़ी की खिड़की
 सुर में दोनोंरोते  रहे
भूख भूख रटते रहे ।

भाई उसे तसल्ली देता
" भुख्खे तुई कांदिस ना
बाबू दिबे आठ आना "
भूख से तू मत रोना
बाबू देंगे आठ आना ।

सामने दीवार पर मेरी नजर पड़ी
" भीख मांगना पाप है
भीख देना बढ़ावा  है "
दो दो  केले मेंने  दिए
गपागप वे खा गए  ।

मेरे बगल वाले ने डाट भगाया,
बोले " ये आपकी जाति की नहीं
बिना गिने साले पैदा करते
काम न धाम बस भीख मांगते
जाए साले अपने धरम वालों के पास ।

अचानक गाड़ी हिचकोले खाने लगी
डरे सहमे ईश्वर अल्लाह करते रहें
एक ही सुर थे सभी जाति धरम के ;
मिल बांट जानवर खाते
अपनो  का ग्रास हम छीनते । ।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

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1/3/1992





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