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Tuesday, July 20, 2021

कविता- अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं

अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं
पैरों तले जमीन खिसकी नहीं
चांद सूरज पर कब्जा हुआ नहीं अभी भी
दिन में तारे निकलते नहीं अभी भी
उल्लू दिन में दिखते नहीं अभी भी
अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं ।
चन्दन और खैर के सारे पेड़ उखडे नहीं
पेड़ों का रिश्ता माटी से मिटा नहीं
चोरों को कुत्ते भौंकते हैं अभी भी
अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं
पैरों तले जमीन खिसकी नहीं ।

सुभाष चन्द्र गांगुली
2003



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