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Saturday, July 17, 2021

कविता- खड़ी फसल


              खड़ी फ़सल

खड़ी फसल रो रही है
बिन जल मुरझा रही है,
प्रताड़ित वृद्ध पिता / बादल 
सीने में उसके धड़कन
मुंह से केवल गर्जन,
किन्तु नहीं टपकता
आंखों से एक बूंद जल।
सभा हुई सभागृह में
नेतागण निश्चिन्त हुए
सूखे के ऐलान से ।
पड़ोसी राज्य में भीषण जल
बाढ ग्रस्त प्रजा,त्रस्त
सभा हुई / सभा गृह में 
नेतागण निश्चिन्त हुए
बाढ़ के ऐलान से ।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

1999___________________
" क्रान्तिमन्यु " में प्रकाशित 

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