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Sunday, July 11, 2021

कविता- मलथस् का क्रोध


बादल मेरे कमरे में
घुस आए,
मेरे चारों ओर फैल गये
बादल बोलें
" रास्ता छोड़ो
उन्मुक्त हवा में उड़ने दो 
इतने ऊपर
अट्ठासी तल पर
क्यो आये हो ? रास्ता छोड़ो....
वर्ना तबाही मचा दूंगा ।" 
मैं बोला, "क्या करूं, कहां जाऊं ?
आधी जमीन पर मुर्दे सो रहे हैं
आधी पर कल कारखाने हैं,
छोटी पड़ रही है धरती ।"
उमड़ - घुमड़, गरज- गरज
बरस गए बादल
और बोलें " क्यो नही मानी
मलथस् की बातें ? "
मैं बोला " मेरे पूर्वजों ने नहीं मानी
मुझे भी नहीं माननी ।"
" क्यों ? "
" क्योंकि प्रजातंत्र में
बहुसंख्यक ही हमेशा राज करते 
अपने समुदाय के प्रति मैं जागरूक हूं ।"
लाल पीला हो गया बादल
चारों ओर भर दिया जल 
पीने के लिए मगर न मिला
एट घूंट जल ।
मैं चिल्लाया " बादल ! बादल ! बादल ! "
मेरी नींद खुल गई ।
देखा पैरों के तल
तब भी था थल
दूर दूर तक नहीं था बादल ।
चारों ओर पड़ा था सूखा
चारों ओर था बंजर और खंडहर ,
चारों ओर मची थी हलचल--
जल जल, जल  दो जल 

एक लोटा लेकर
मैं भी निकल पड़ा

ढूंढने जल ।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 

__1996____________
मलथस् -- अर्थशास्त्री टामस राबर्ट मलथस् ने जनसंख्या वृद्धि के ख़तरों को बताते हुए जनसंख्या सिद्धांत पर 1798 में निबंध लिखा था । उनके अनुसार जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है । 

("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)


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