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Tuesday, July 6, 2021

कविता- पानी में महल



रेगिस्तान में 
महल बनाने का अथक प्रयास
व्यर्थ होना था अनायास ,
हुआ ।
किंतु हम हार नहीं मानेंगे
डटे रहेंगे, जुटे रहेंगे, 
भगवान राम का नाम लेते रहेंगे,
क्योंकि हमें दिखाना है अजूबा करके,
किंतु न जमीन पर
और न जमीन से जुड़कर ।
रेगिस्तान तो क्या हम
पानी में महल बनाकर दिखायेंगे ,
भूखे बच्चे देखकर बौरायेंगे
दुनिया वाले हमारी लोहा मानेंगे ।
कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चे,
भूखे नंगें, दीन दुखी जिन्हें छिपा दिए जाते, 
खास खास अवसरों पर, वे सब
सुनकर दंग रह जाएंगे ।।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

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' दिशाविद' काव्य संकलन , तरंग
1995




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