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Thursday, July 15, 2021

कविता- सारोवीवा

           

सारोवीवा !
तुम सिर्फ एक नाम नहीं
उपन्यासकार, नाट्यकार, पर्यायवरणविद् नहीं,
सज्जन, सुपुरुष, नेक इंसान थे
दलितों-पिछड़ों के मसीहा थे
मानवाधिकार का नाम है सारोवीवा ।
प्रजातंत्र के हिमायती कहना
दरअसल होगा नाकाफी,
प्रजातंत्र के पर्याय हो तुम ।
सारोवीवा !
तुम्हें विश्व के विशाल प्रजातंत्र भारत के
इस नागरिक का शतकोटी प्रणाम ।
तुम्हारे हाथ की कलम,
कलम नहीं, एक मजबूत तलवार
प्रजातंत्र का सशक्त हथियार ,
जिसने चूर किया तानाशाहों का अहंकार,
जिसने खोल दिया प्रजातंत्र का द्वार 
और मिला तुम्हें 'सानफ्रांसिको गोल्डन पुरस्कार'
तुम्हारे कलम ने दिया तानाशाहों ‌‌को धिक्कार ।
सारोवीवा ! 
तानाशाहों ने जहां कहीं
प्रजातंत्र की मौत चाही
प्रजातंत्र पहुंचा वहां देर सबेर ।
तुम्हारी कुर्बानी नहीं जाएगी बेकार
प्रजातंत्र पहुंचेगा ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌नाइजीरिया के घर घर
नाइजीरिया के तानाशाहों के नाम पर
लगे रहेंगे तुम्हारे और साथियों के 
ख़ून के धब्बे लगे रहेंगे हमेशा हमेशा ।
तुम्हरा अस्तित्व तुम्हारे विचारों से हैं
तुम्हारे विचार जीवित रहेगा हमेशा हमेशा ।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

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'अमृत प्रभात ' में प्रकाशित
6/11/1995

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