Search This Blog

Monday, July 12, 2021

कविता- भारत माता रोती है!

                  भारत माता रोती है
                  रोती है तो रोने  दो ।
बाढ से बेघर होते हैं
बेघर उनको होने दो,
बांध ढहने से वे दबते हैं
दबते हैं तो दबने दो ,
धर्म से समाज टूटते हैं
टूटते हैं तो  टूटने  दो ।
                     भारत माता रोती है
           ‌‌          रोती है तो रोने दो ।      
देखो बच्चे ईंटा ढोते
चुप्पी साधे बैठे रहो,
आतंकी गर बढ़ते हैं
नादानो को मरने दो ,
चिंताओं में वोट सेंको
भारत मां को रोने दो । 
          ‌‌ ‌          भारत माता रोती है
                      रोती है तो रोने दो । 
गाड़ी ज्यों ज्यों रुकती है
अपाहिज अंधे आते हैं
रोटी  दो  पैसे  दो
सुर लय में कहते हैं,
मुंह फेरो शीशे खींचो
उन्हें सुर में रोने  दो ।
                     भारत माता रोती है
                      रोती है तो रोने दो ।
सज धज के तुम आ जाओ
बुफे  में  रंग  और  लाओ,
दारु पीकर झोरके खाओ
भूखे  बच्चे डांट भगाओ ,
उनको जूठन खाने दो
कुत्ते  जैसे  जीने  दो ।
                     भारत माता रोती है
                      रोती है तो रोने दो ।
अर्थ व्यवस्था बिगड़ती है
आंकड़ों में उलझा दो,
पेट्रोल डीजल बढ़ता है
तेल विदेशी कहते रहो,
मुद्रास्फीति बढ़ती है
काला धन निकालते रहो ।
                      भारत माता रोती है
                       रोती है तो रोने दो ।
घूसखोरी बढ़ती है
दूध का धोया कौन कह दो,
दंगे फसाद बढ़ते हैं
जनता पर दोष मढ दो,
आपस में लोग टकराते हैं
चूर चूर हो जाने दो ।
                         भारत माता रोती है
                          रोती है तो रोने दो ।
दर दर कौरव खड़ हैं
उनको कपड़े उतारने दो 
पांडू भोले बनते हैं
बनते हैं तो बनने दो
जात पात से घर बंटते हैं
बंट भी तो जाने दो ।
                          भारत माता रोती है
                           रोती है तो रोने दो ।।

                * सुभाष चंद्र गांगुली  *
             _____________________
Written in 1998
' काव्य कलश ' 'नये तेवर ' में प्रकाशित ।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)



No comments:

Post a Comment