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Friday, July 30, 2021

कविता- मुद्दे



सावधान !!
मुद्दों की तादाद बढ़ रही है,
तेज रफ्तार से बढ़ रही है ।
चिंताशील जीवों की तादाद से
मुद्दों की तादाद 
दस गुनी हो चुकी है ।
सभागार, डिनर टेबुलों को त्यागकर,
मुद्दे सड़कों पर 
गलियों, नुक्कड़ों में
खेत, खलियान, चौपालों में
पहुंच चुके हैं ।
तेल में, रेल में, साफ्टवेयर में
दवा में,आक्सीजन में,
चुप्पी में, बोलने में,
खाने में, नहाने में, आंसू बहाने में,
सर्वत्र मुद्दे ही मुद्दे ।
मुद्दे हवाओं में बह रहे हैं
सपनों में तैर रहे हैं
भटकाये जाते है ध्यान मुद्दो से
दफना दिए जाते हैं मुद्दे /किन्तु
बार बार जीवित हो उठते हैं वे।
जिन्दगी के लिए,
लोकतंत्र के लिए
जरुरी है मुद्दों का रहना
किन्तु सत्यानाश से बचने के लिए
ज़रूरी है मुद्दों पर लगाम लगाना ।


सुभाष चन्द्र गांगुली
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30/7/2021

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